हिन्दी है हम ,
वतन हैं हिंदुस्तान हमारा
ये बात अब पुरानी हुई लगती है .खासकर आज महाराष्ट्र विधानसभा में जो भी हुआ है उसके बाद लगता है कि अब ना तो हिन्दी राष्ट्र भाषा रह गयी है और ना ही हिंदुस्तान हिंदुस्तान .अब तो ये महाराष्ट्र ,आसाम ,कश्मीर,नागालैंड ,तमिलनाडु जैसे छोटे छोटे राज्य देश बनते नज़र आ रहे हैं .हम पाकिस्तान और चीन का बहुत हो हल्ला करते रहते हैं लेकिन लगता है कि नक्सली,माओवादी ,उल्फा और ना जाने कितने ही ऐसे संघठन और दल हैं जो हमारे देश से अपने आपको अलग करना चाहते हैं .पहले तो दक्षिण में हिन्दी के विरोध में आन्दोलन चलते थे पर वो शायद ऐसे ना रहे होंगे या मैं कहूँ की वो समय अलग था .आज महाराष्ट्र पर राज करने का सपना लेने वाला राज इतना आगे बढ़ चुका है की ना केवल उतर भारतीयों को पीटा था है बल्कि अब एक विधायक द्वारा हिन्दी में शपथ लेने पर उसके साथ विधानसभा में ही हातापाई कर दी गयी .
6 दशक बाद भी हम आजाद नहीं है .ना समाज से ,ना इन नेताओं से ,ना अपने आप से.बस एक बार किसी के इलाके ,धर्म ,भाषा का नाम ले दिया जाये तो हंगामा हो जाता है .ये सब याद दिलाता है भीष्म साहनी की अमर कृति तमस के उस भाग को जहाँ एक सुवर को मारा जाता है और बाद में अँगरेज़ उस के द्वारा हिन्दू मुस्लिम में दंगे करवा जाते हैं .इस से तो ऐसा लगता है की कहीं ना कहीं आज के नेता अंग्रेजों से कहीं घातक हैं .जो अपने आप को संविधान से ज्यादा मानते हैं .
वैसे मुझे लगता है की कहीं ना कहीं जो मुद्दा राज ठाकरे उठा रहे हैं ,या कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बोला वो कहीं ना कहीं सही भी है ,बस बात ये है की उस बात को किस तरीके से दुनिया के सामने रखा जाये.आज तक जो भी विस्थापन पूर्व से हुआ है उसमें पुरानी सरकारों का बहुत बड़ा हाथ है .अगर सरकारें सही तरीके से काम करती तो क्या यु.पी.-बिहार में दुसरे इलाकों जितने साधन नहीं है की वो विकसित राज्य ना बन सकें .हमारे देश की राजनीती का सबसे अहम् हिस्सा होते हुए भी वो सबसे बुरी हालत में हैं .इस के चलते पूर्वी यु.पी.-बिहार से नबे के दशक से दुसरे राज्यों में विस्थापन शुरू हुआ ,वो कहीं ना कहीं देखा जाये तो उन इलाकों के लिए एक तरह से विष बन चुका है .कोई माने ना माने पर हम लोग कुछ हद तक इन बातों को मानते हैं की पूर्व से आये लोगों ने यहाँ के हालत बहुत बदल दिए है .और ये अच्छे हालत तो बिलकुल भी नहीं है . और वहां से विस्थापन का दोष हम उन लोगों पर नहीं लगा सकते .ये इस विशाल देश की एक और दशा है .
राज ठाकरे ये भूल जाता है मराठी लोग भी देश के दुसरे हिस्सों में रहते हैं ,फिर तो उन्हें उन मराठी लोगों को अपने राज्य में बुला लेना चाहिए , ताकि वो अपनी जन्म भूमि की गोद में मर सकें .आज राज्यों के साथ ऐसा है ,कल फिर एक राज्य के विभिन् इलाकों के लोग कहेंगे की हमारे इलाकों में मत आओ .महाराष्ट्र में ही कोंकण है जहाँ की भाषा कोंकणी है फिर तो वो लोग मुंबई नहीं जा पाएंगे .कुछ दिनों बाद हालत ये होंगे की भईया अपने जिले में रहो नहीं तो अच्छा नहीं होगा .वैसे 2012 तो नजदीक ही है .लेकिन एक बात ये है की अगर ऐसे लोग और 2-4 हो गये तो 2012 की भी जरुरत नहीं है .
1 comment:
in jakhmon ko ab marham ki bahut jaroorat hai
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