Sunday 25 October 2009

shockers n jockers - 1

shockers n jockers
मेरा पहला ब्लॉग कालम जिसमें मेरी जिंदगी के कुछ अनुभव हैं जहाँ मुझे झटका तो लगा ही साथ ही साथ इन्सान रूपी जोकर के दर्शन भी हो गए .ये जोकर कुछ बार मैं हूँ तो कुछ बार दुसरे .कईं बार मुझे झटके लगे तो कुछ बार दूसरों को . 
......................................................................................................................................................

    किस्सा कुर्सी और मेज़ का ...                                                                                                                                                                          

 बच्चे  तो बच्चे उनके बाप उनके भी बच्चे बने लगते हैं
 इस कुर्सी कि दौड़ में सभी अपनी इज्ज़त खुद ही तार तार करते नज़र आते हैं .

शीर्षक से आपको थोडा अजीब लगे की किस्सा तो कुर्सी का होता है ,पर मैं मेज़ को क्यूँ साथ में ले आया .अब बात ये है की बेचारी कुर्सी अकेले चर्चा में आते आते परेशान हो गयी है तो मेज़ ने उसका साथ देने की सोची .
       ये जो किस्सा है किसी राजनितिक पार्टी या किसी नेता का नहीं है जो सत्ता के लिए या मंत्रालय के लिए लड़ रही है बल्कि एक ऐसे संस्थान का है जहाँ पढ़ाई लिखाई की जाती है पर वहां के नए नवेले अध्यापक बोले तो अतिथि व्याख्याता बच्चों को पढ़ने की बजाय उन चीज़ों पर ध्यान दे रहे हैं जो की न तो बच्चों के काम के हैं ना उनके. हम जब भी किसी संस्थान में देखते हैं तो वहां कुछ न कुछ राजनीती जरुर होती है .पर शायद वहां कुर्सी मेज़ के लिए तो पंगा तो नहीं करते होंगे .बहुत सी ऐसे वाकया मैंने देखे हैं जहाँ या जिन मुद्दों पर खींचतान होती है वो बहुत ही छोटे होते हैं .जिनको आसानी से दरकिनार किया जा सकता है पर वहां पर चुप चाप बैठने की बजाय हम वहां ऊँगली करने लगते हैं .

               अब इस मेज़ कुर्सी वाले मुद्दे को ही ले.एक संस्थान का स्टाफ रूम है जहाँ सभी अतिथि व्याख्याता बैठते हैं और अपना सामान रखते हैं .अब वहां हालत बन गए पुराने लोगों और नए रंगरूटों के बीच में लडाई के ,सिर्फ कुर्सी और मेज़ के लिए .बात सिर्फ इतनी सी है की नए रंगरूटों ने मेजों को हथिया लिया. और अगर उनकी मेज़ या कुर्सी का इस्तेमाल कोई कर लेता है तो उन्हें दिक्कत  हो जाती है . जब की ये मुद्दा बनता ही नहीं है.  अब पुराने व्याख्याताओं  को ये बात थोडी अटपटी लगी क्यूंकि उन्हें बैठने  को बेंच मिल रहे है .अब नए बन्दे पुरानो से ऐसे व्यवहार  कर रहे हैं की वो ही सब कुछ हैं .अगर किसी कि कुर्सी उनको उनकी जगह से खिसकी मिले तो वो तब तक बूत कि तरह खड़े रहते हैं जब तक कि उनकी कुर्सी से बैठने वाला बंद खडा ना हो जाये या ,उसे उसकी जगह पर रख दे .नए लोगों ने तो वहां ताले भी लगा दिए जैसे कि सारी  दुनिया का बही खता उन्ही के पास है .ये लोग ना केवल अपनी साख गिरा रहे हैं बल्कि उस संस्थान कि भी .और साथ ही साथ वहां पढने वालों के आगे हंसी का पात्र भी बन रहे हैं .
                  नेताओं ने कुर्सी कि महिमा के आगे देश का तो बेडागर्क  कर ही रखा था ,अब ये कीडा दुसरे लोगों में भी घुश गया है .अब ना जाने आगे आगे क्या होगा .अब आगे क्या होगा इस पर एक अलग लेख हो सकता है .
 जैसे कि हर कहानी की एक सीख  होती है वैसे ही इस कहानी   की भी है ...वैसे मैं यहाँ इसे सीख नहीं कहूँगा बल्कि इसे दो भागों  में  बाटूंगा  .
1. shock of the story - झटका ये की उस संस्थान का क्या हाल हो गया है .
2. joker of the story  -  और यहाँ जोकर वो लोग बने हैं जो नए आयें हैं और अपने आपको तीसमारखां समझते    
  हैं ,जब की  उनमे से शायद ही कोई अपने पद के लिए सही बैठता है.
(ये किस्सा कुछ दिन पहले का ही है ,मैंने यहाँ संस्थान या किसी इन्सान का नाम नहीं दिया है . यहाँ किसी पर ऊँगली उठाना मकसद नहीं है बल्कि उस बात के पीछे का मतलब समझने का है जो हुआ है .)
                                                      
          

No comments: