हरियाणा में कल चुनाव हैं ,और मुझे समझ नहीं आ रहा की मैं वोट देने जाऊँ या नहीं . अब इस मसले में २ बातें हैं .पहली तो ये की कुछ महीने पहले ही मैं रेडियो में वोट देने के लिए लोगों का ईमान जगा रहा था ,और दूसरा ये की मेरे चुनाव-क्षेत्र में मुझे कोई ऐसा उमीदवार नहीं दिखता की मैं उसे वोट दूँ .दूसरी बात के लिए मैं कहना चाहूँगा की उमीदवार जरुर है पर जिस पार्टी की वो उमीदवार हैं वो पार्टी प्रदेश में अंग्रेजी गाने नहीं बजेनी देगी अगर वो सता में आती है तो .
वैसे जिस पार्टी की मैं बात कर रहा हूँ उसका हरियाणा की सत्ता में आना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है .फिर भी इस पुरे वाकया ने मेरे साथ अछी खासी गड़बड़ कर दी है .अब वो बात जो मैंने पहले की थी की मैंने वोटर्स का ईमान जगाया था ,और आज मैं खुद ही मुश्किल में हूँ की वोट करूँ या नहीं .वैसे हरियाणा में इस बार जनमत बहुत साफ़ नज़र आ रहा है .
इस बार के चुनावों में सत्ताधारी दल के खिलाफ कोई भी ,विपक्षी दल मजबूत नहीं दिख रहे हैं .मुख्यमंत्री हूडा ने बेशक कुछ जगह काफी अच्छा काम किया है पर कहीं जगह वो अपनी कुछ बड़ी और बहुपर्तिक्षित परियोजनाओं को पूरा नहीं कर पाए या कहें तो अमलीजामा नहीं पहना पाए .सोनीपत में बन रही राजीव गाँधी एजूकेशन सिटी ४ साल में भी सिर्फ २ कदम ही चल पायी .साथ ही साथ वर्तमान सरकार बिजली के मुद्दे पर अपनी वाही वाही लूटना चाह रही है पर सचाई तो ये है की जो भी बिजली हरियाणा में बनेगी उसका आधा हिस्सा तो दिल्ली को जायेगा .
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कांग्रेस के अलावा किसी भी राष्ट्रीय दल का हरियाणा में जनाधार नहीं है. हरियाणा में आया राम गया राम और गठबंधन राजनीती बहुत रही है .और गठबंधन राजनीती न तो सफल रही है ना ही बहुत साफ़ सुथरी .और इसका नतीजा न केवल जनता बल्कि खुद उन दलों को भी भुगतनी पड़ी जो सत्ता में थे .पिछले सत्ता समय में इनेलो के करता धर्ताओं ने कुछ ऐसे काम किये की उनके खुद के लोग भी उनसे अलग हो गए .और जहाँ तक जनता की बात है तो जनता तो नाराज़ हो ही गयी .और इस बार भी इनेलो के साथ कुछ अच्छा होता नज़र नहीं आ रहा .वहीँ दूसरी तरफ भजनलाल की पार्टी हंज्का शायद अपने परिवार के दम पर १-२ सीट ले जाये तो बहुत बड़ी बात होगी .
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और आखिर में एक बात की इस बार वोट करना मेरा ईमान नहीं है .और शायद हरियाणा में भी किसी का नहीं हो.
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