जब लोकपाल का मुद्दा नहीं था तो कितना आराम था
नेता
हमारे लोकसेवक आराम से रहते थे
उनको न कोई डर था ना कोई खोफ
जनता की याद तो अगले चुनावों में ही आती थी
और अब देखो हमारे लोकसेवक जिनको हमने चुनकर भेजा था
उन्हें याद आ गया की वो जनता के सेवक हैं
आखिर अगले महीने चुनाव जो हैं
और सब खतरे में हैं ...
मीडिया
साल के शुरू तक सब सही था
और फिर उदय हुआ अन्ना का
अन्ना ने तो सभी जगह अन्ना बीट शुरू करवा दी
वो कब सोये कब जागे
कब योग किया कब क्या किया
सब कुछ
बेचारे पत्रकार अन्ना ने अपने साथ उनको भी सन्यासी टाइप बना दिया
सुबह के तीन बजे भी खबरें लाइव हुई
और लगातार सैंकड़ो घंटे भी
वो भी बिना ब्रेक
हमारे घर
घरों में तो बहस ही तभी होती थी
जब चुनाव आते थे
और अब घर के मुद्दे भी बाद में हैं
पहले लोकपाल की बात जरुरी है
2011 तो लोकपाल में चला गया अब देखना है की क्या अगला साल भी इसी में जाएगा ...
नेता
हमारे लोकसेवक आराम से रहते थे
उनको न कोई डर था ना कोई खोफ
जनता की याद तो अगले चुनावों में ही आती थी
और अब देखो हमारे लोकसेवक जिनको हमने चुनकर भेजा था
उन्हें याद आ गया की वो जनता के सेवक हैं
आखिर अगले महीने चुनाव जो हैं
और सब खतरे में हैं ...
मीडिया
साल के शुरू तक सब सही था
और फिर उदय हुआ अन्ना का
अन्ना ने तो सभी जगह अन्ना बीट शुरू करवा दी
वो कब सोये कब जागे
कब योग किया कब क्या किया
सब कुछ
बेचारे पत्रकार अन्ना ने अपने साथ उनको भी सन्यासी टाइप बना दिया
सुबह के तीन बजे भी खबरें लाइव हुई
और लगातार सैंकड़ो घंटे भी
वो भी बिना ब्रेक
हमारे घर
घरों में तो बहस ही तभी होती थी
जब चुनाव आते थे
और अब घर के मुद्दे भी बाद में हैं
पहले लोकपाल की बात जरुरी है
2011 तो लोकपाल में चला गया अब देखना है की क्या अगला साल भी इसी में जाएगा ...
1 comment:
well written, Sumit :)
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