Wednesday, 30 December 2009

साल दर साल ये ही है कहानी



यहाँ तो लगता है की अँधेरे ने फैला दिए हैं अपने पर 
कुछ भी ना लगे सही 
क्यूंकि आम इन्सान की ना है किसी को फ़िक्र
और हो भी क्यूँ 
अरबों करोड़ों रुपए तो उन्हें मिल ही जाते हैं अपने लिए 
जुर्म कर के भी जब उन्हें है ही पता की 
बस एक इस्तीफा देकर ही चल जायेगा काम तो 
कहे को वे करें चिंता 
यहाँ तो सब बने बैठे हैं मौम के बूत
वो भी जो जुर्म करते हैं 
और वो भी जिन पर जुर्म होता है
साल दर साल ऐसे ही तो होना है 
चाहे हम कुछ भी करें 
कितना हो-हल्ला मचाएं 



फिर से 365 दिन बाद एक साल और चला जायेगा 
पर फिर भी कोई कुछ नहीं करेगा 
दिन महीने साल तो ऐसे ही चले जातें रहेंगे
हम उसके जाने के आंसू 
और आने का नशा करते रहेंगे
पर कुछ ऐसा ना करेंगे जिस से हमे ख़ुशी मिले 
हमारी धरती फले फुले ...
साल दर साल ये ही है कहानी 
इन्सान ने बना दी धरती 
एक अधूरी कहानी ...

1 comment:

Unknown said...

very good friend... very good
and happy new year...