Friday 24 February 2012

"दौड़"



एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी
 है .
चंद लम्हों का साथ लगता नाकाफी है 
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है .

पहले जीत जीत कर भी हारता रहा 
खुद को खुद से ही मरता रहा .
आज आस्मां से एक सुनहरी किरण झांकी है 
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है  .

बहुत भटका हूँ तब ही पाया है .
एक विश्वास आज जो मन में आया है 
सफ़र की थकान अब लगती नाकाफी है 
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है .

अब साँसों में एक तहराव है 
मन को एक विश्वास है 
ज़िन्दगी कुछ सपने समेटना चाहती है 
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है .

बोल कर तो मैं बता ना सका ,
शब्दों में वो बात कहाँ 
तुम्हें व्यक्त जो कर सकें
ऐसा वो एहसास कहाँ 
तुम्हारा होना ही काफी है 
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है 

3 comments:

@ngel ~ said...

nice poem :)

shvetilak said...

lovely!

shvetilak said...

:) hey u r nominated for Liebster Award here http://shvetasp.blogspot.in/2013/03/thank-you.html