एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है .
चंद लम्हों का साथ लगता नाकाफी है
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है .
पहले जीत जीत कर भी हारता रहा
खुद को खुद से ही मरता रहा .
आज आस्मां से एक सुनहरी किरण झांकी है
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है .
बहुत भटका हूँ तब ही पाया है .
एक विश्वास आज जो मन में आया है
सफ़र की थकान अब लगती नाकाफी है
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है .
अब साँसों में एक तहराव है
मन को एक विश्वास है
ज़िन्दगी कुछ सपने समेटना चाहती है
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है .
बोल कर तो मैं बता ना सका ,
शब्दों में वो बात कहाँ
तुम्हें व्यक्त जो कर सकें
ऐसा वो एहसास कहाँ
तुम्हारा होना ही काफी है
एक दौड़ ज़िन्दगी की अभी बाकी है
3 comments:
nice poem :)
lovely!
:) hey u r nominated for Liebster Award here http://shvetasp.blogspot.in/2013/03/thank-you.html
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