Monday 7 September 2009

ये है हमारी आज की दुनिया ...

अगर आप दार्जिलिंग में हाथ नहीं पकडेंगे तो फिर कहाँ जा कर पकडेंगे लगता है कुछ दिनों में हमें हाथों में हाथ डालने के लिए विदेश जाना पड़ेगा. जो भी आज कल हमारे आस पास हो रहा है उसे देख कर तो लगता है ही.ये जय और वीर के लव आज कल से बहुत अलग दुनिया दिखती है.यहाँ आप हाथ नहीं पकड़ सकते यहाँ तक की भाई बहिन भी,भाई बहिन साथ नहीं चल सकते ,काफ़ी शॉप में आप साथ नहीं बैठ सकते .अपनी ही पत्नी को किस नहीं कर सकते तो किस को करेंगे.

बात दरअसल  ये है की अभी कुछ दिन पहले की है जब दार्जलिंग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने शहर में हाथों में हाथ डाल कर चलने और किसी आपत्तिजनक अवस्ता में घुमते या बैठे देख लिया  तो  आपकी खैर  नहीं .और साथ ही साथ अगर आप नॉएडा में है तो अपने दोस्तों के साथ 10 min  से ज्यादा कैफे में मत बैठयेगा,क्यूंकि क्या पता किस पल स्वयंभू नैतिक पुलिस अपने डंडे लेकर हमारे हाथ पैर तोड़ते मिलेगी .
एक बात ये समझ नहीं आती की क्या हाथ पकड़ने से हमारे समाज में गंदगी  होती है ,या फिर काफ़ी पीने से .आपने कभी किसी सिगरेट पीने वाले को रोक  कर देखा है , और उसका जवाब भी देखा होगा .हम बुरी चीज़ों को रोकने की बजाय छोटी छोटी  चीज़ों पर लड़ते रहते हैं .जींस ना पहनो ,ये मत पहनो वो मत करो ये मत करो .लेकिन क्या कभी किसी नेता को बोला है की तुम इतना झूठ मत बोलो .कभी किसी सरकारी मुलाजिम को रिश्वत देने पर किसी को नैतिकता  याद नहीं आती .प्यार के लिए किसी की जान ले सकते हैं पर किसी गुनाह के लिए आवाज़ उठाएं तो दोषी  उन्हें ही बना दिया जाता है . अपने हित्तों  के लिए आज कुछ लोग देश-समाज को 21वीं सदी की जगह तालिबानी युग की तरफ ले कर जा रहे हैं . 
जैसे जैसे समाज विकसीत   होने की कोशिश कर रहा है वैसे ही कहीं न कहीं से  उसको पीछे धकलने वाले भी आ खड़े होते हैं . 
 घूंघट में गोरी क्यूँ जले 
दो पग भी वो कैसे चले

कोई जाने ना

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