चले जा रहा हूँ
कहीं अंत नही हैं
चला जा रहा हूँ अनंत में
कभी रुक सकूँ गा लगता नही है
कभी बैठ कर कुछ सौचुन्गा
लगता नही है
चले जा रहा हूँ
रुकना चाहता हूँ
पर रुकने का फायदा
रुकने का फायदा नज़र नही आता
नज़र है पुरी दुनिया की मेरे पर
पर , पर लगा कर उड़ जन चाहता हूँ
चाहता हूँ की अनंत सागर में तैरता ही चला जाऊँ
चले जा रहा हूँ
चलते ही जाना चाहता हूँ
1 comment:
सुन्दर काव्य सृजन!
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