Thursday, 17 March 2011
Wednesday, 16 March 2011
सोशल नेटवर्किंग - 1
पिछले दस सालों में हमारी दुनिया काफी कुछ बदली है. इन्टरनेट के आने के बाद और खासकर सोशल नेटवर्किंग ने हमारी आम दिनचर्या को काफी हद तक अपने कब्जे में कर लिया है.पहले पहल जो शुरुआत ऑरकुट से हुई थी अब ट्विट्टर और फेसबुक तक पहुँच गयी है.
जब फेसबुक आई तो ऑरकुट के दिन चले गए . वहीँ ऑरकुट से फेसबुक पर पलायन इसलिए हुआ क्यूंकि ऑरकुट सुरक्षित नहीं रह गया था. पर फेसबुक पर भी शुरू से ही इस तरीके की बातें उठने लग पड़ी थी . जहाँ एक तरफ जब फेसबुक की शुआत हुई तो वो सिर्फ उच्च वर्ग तक ही सीमित था , धीरे धीरे प्रसिद्ध हुआ और अब एक बड़ा वर्ग फेसबुक ही इस्तेमाल करना पसंद कर रहा है .
मेरे ग्रुप या जान पहचान में जहाँ एक तरफ कुछ लोग फेसबुक पर आने से बचते थे तो मेरे जैसे हर वक़्त चिपके रहने वाले भी काफी दोस्त हैं. और सोशल नेटवर्किंग से जुड़े कईं किस्से भी हमसे जुड़ गए हैं. कुछ अच्छे तो कुछ बुरे ,और मेरे साथ पिछले दिनों हुआ अब तक का सबसे भयानक किस्सा .
कुछ दिनों पहले मुझे फेसबुक पर एक कॉमन फ्रेंड की तरफ से रिक्वेस्ट मिली तो ज्यादा न सोचते हुए हुए मैंने हाँ कर दी . पर कुछ दिनों बाद जब मैंने अपने वाल पर जो पढ़ा उसको देख कर आँखे फटी की फटी रह गयी . मेरे वाल पर अभद्र भाषा में मेरे एक दोस्त और उसके कुछ दोस्तों के बारे में लिखा हुआ था . और जब मैंने ऐसा करने वाली की प्रोफाइल चेक की तो उसने मेरे दोस्तों के सभी दोस्तों पर अभद्रता की सीमा पार करते हुए वैसा ही कुछ लिखा हुआ था. उस सब के पढ़ने के बाद न केवल मन विचलित हुआ बल्कि सोचने पर मजबूर भी हो गया. सोशल नेटवर्किंग
किसलिए बनाई गयी है और आज हमारे सामने उसका इस्तेमाल कैसे हो रहा है. गालियाँ या फिर किसी को निजी तौर पर कुछ बोलना तो बहुत आम बात है पर किसी इंसान के बारे में वाहियात लिखना शायद शर्मसार करने वाला .
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