Wednesday, 30 December 2009

साल दर साल ये ही है कहानी



यहाँ तो लगता है की अँधेरे ने फैला दिए हैं अपने पर 
कुछ भी ना लगे सही 
क्यूंकि आम इन्सान की ना है किसी को फ़िक्र
और हो भी क्यूँ 
अरबों करोड़ों रुपए तो उन्हें मिल ही जाते हैं अपने लिए 
जुर्म कर के भी जब उन्हें है ही पता की 
बस एक इस्तीफा देकर ही चल जायेगा काम तो 
कहे को वे करें चिंता 
यहाँ तो सब बने बैठे हैं मौम के बूत
वो भी जो जुर्म करते हैं 
और वो भी जिन पर जुर्म होता है
साल दर साल ऐसे ही तो होना है 
चाहे हम कुछ भी करें 
कितना हो-हल्ला मचाएं 



फिर से 365 दिन बाद एक साल और चला जायेगा 
पर फिर भी कोई कुछ नहीं करेगा 
दिन महीने साल तो ऐसे ही चले जातें रहेंगे
हम उसके जाने के आंसू 
और आने का नशा करते रहेंगे
पर कुछ ऐसा ना करेंगे जिस से हमे ख़ुशी मिले 
हमारी धरती फले फुले ...
साल दर साल ये ही है कहानी 
इन्सान ने बना दी धरती 
एक अधूरी कहानी ...

Tuesday, 29 December 2009

आपका क्या ख्याल है?



याद नहीं इस साल में कुछ ख़ास किया होगा
बस बीत गया चुपके से, पता न चला
नये की तयारी है
पर देश में फैली बीमारी है
बीमारी महंगाई की
बीमारी भ्रष्टाचार की
घोटालों की,
अन्याय की
नए साल में यही बैलेंस ले के जा रहे हैं
क्या, आपको ऐसा नही लगता?
मुझे तो कोई और बैलेंस नज़र नही आता
आपका क्या ख्याल है?
बस इतना सा सवाल है
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मलखान सिंह द्वारा दफ़ा-512(dafaa512.blogspot.com) के लिए

अच्छा है तुम इस दुनिया में नहीं हो

पिछले दिनों मुझे एक केस के सिलसिले में घर जाना पड़ा.ये केस में फ़ोन का था जो की आज से ६ महीने पहले छीना गया था ,और उसकी पहली सुनवाई ६ महीने के बाद हो रही थी .उस दिन अदालत में काफी देर इंतजार करना पड़ा तो मैं सोच रहा था की हमारी न्यायिक व्यवस्था कितनी ढीली ढाली है .की एक छोटे से केस में ही कितना समय लग रहा है.
            पर जो मैं सोच रहा था वो शायद बहुत ही गलत सोच रहा था ,उसी दौरान रुचिका केस में राठौर को सजा मिली ,सजा भी क्या मिली सिर्फ ६ महीने. एक लड़की की जान के लिए ६ महीने की सजा और सजा मिलने के १० मिनट बाद ही जमानत .और भी जितने पहलु मैंने इस केस में अभी तक देखे सुने हैं ,उन से तो लगता है की मैं तो सिर्फ ६ महीने से ही परेशान हुआ   और  रुचिका के घरवाले  जो 19 साल  से केस लड़  रहे  थे  .एक दबंग  अफसर के डर में अब तक जी रहे थे उन पर क्या गुजरी  होगी .इसका हिसाब लगाना ना मेरे बस में है ना ही किसी और के.रुचिका ने तो अपनी ज़िन्दगी को खत्म ही कर लिया था ,पर उसके भाई आशु पर तो जो भी बिता वो हमारी व्यवस्था का चेहरा सा नज़र आता है .की हम किस समाज में जीतें हैं .ऐसी चीज़ें हमने फिल्मों में बहुत देखी हैं .पर इतना भयानक वर्णन शायद ही सुना हो. 
             राठौर जो की एक राक्षस की तरह हस्ते हुए अदालत से निकला था ,ने ना केवल अपने विभाग  बल्कि नेताओं तक पर इतना असर किया की उस पर कहीं से भी आंच नहीं आई.वो पदोनती पर पदोनती लेता रहा ,और गिरोह्त्रा परिवार पर अपने जुल्म जरी रखे रहा .हर रोज अब कोई ना कोई नेता ,या फिर पुलिस विभाग से नए नए खुलासे हो रहे पर शायद राठौर तो आराम से अपने घर बैठ कर ये तमासा देख रहा होगा.
             एक बात और की वैसे तो रुचिका ने ज़िन्दगी से हार मान कर आत्महत्या तो की ,लेकिन रुचिका ने शायद सही ही किया .इस ६ महीने की सजा के ढोंग को देख कर वो कर भी क्या पाती ,एक और ज़िन्दगी जीते जी मर जाती .अच्छा है रुचिका आज जिंदा नहीं है ,नहीं तो उसका मन राठौर,तिवारी और उन बाबाओं को देख कर रो रहा होता जो कितनी ही लड़कियों को अपनी हवास का शिकार बनाते हैं और साफ़ साफ़ बच कर निकल जातें हैं .
                                                              

Wednesday, 23 December 2009

ज़िन्दगी की तलाश में ...


ज़िन्दगी की तलाश में
मैं चल तो दिया
उस दिन रुका था एक जगह
जहाँ था "वो"
जिसने बदल दी मेरी ज़िन्दगी की तलाश को
उस तलाश को तलाशते
मैं तो जान भी ना पाया
की किस दर पर मैं चला गया
ऐसा "वो" मिला था मुझे
जिस से अब जुड़ गया हूँ मैं
चाह कर भी अब "वो" ना जा पायेगा
मेरे पास से .
पर वो कहता है की तू चला जा
पर क्या अपनी रूह से अलग हो सकता हूँ मैं
बस एक सवाल है ये मेरी ज़िन्दगी का

Sunday, 13 December 2009

सुम मैं गुम सुम





सुम सुम गुम सुम मैं गुमसुम
मैं तू ,तू मैं
तुम हम हम तुम
भूला तू ,ना भूला मैं
मैं जाना ,सुम तुम से
तुम सुम से नहीं
फिर भी तू तू नहीं
तुम मैं नहीं
बस हम तो गुम तुम में
पर तुम तुम हो गुम गुम
भूल मुझे गुम हो तुम
पर सुम तो तुम में ही है
ना हो जा इतना गुम
की सुम रूम सुम गुम सुम
ना हो जाये तू गुम ...