Saturday, 21 November 2009

सब सही है


यहाँ कोई गलत नहीं है
सब का अपना सोचना है
अगर मेरे लिए कोई सही नहीं है
तो किसी के लिए मैं सही नहीं हूँ.
इस दुनिया में अपनी कमियों को छिपाने के लिए 
हम दूसरों को बुरा बना देता है.
यहाँ कोई सही नहीं है यहाँ कोई झूठा नहीं है
पर यहाँ डर है यहाँ प्यार है
यहाँ वो है जो कहीं भी नहीं है.
मैं जानता हूँ की मैं जो हूँ 
मैं हूँ.
मेरे होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता 
पर पड़ता है क्यूंकि मैं तो मैं हूँ 
मैं प्यार करता हूँ नफरत करता हूँ
भुलाने की कोशिश करता हूँ 
पर सही तो नहीं है हैं ना
की सब भूल जाऊँ.
जानता हूँ सब सही नहीं है 
पर कैसे जाने दूँ अपने प्यारे को दूर .
जानता हूँ सब सही नहीं है 
पर फिर भी कोशिश जारी है 
की सब सही हो जाये 
होगा पर जानता हूँ की कुछ तो ऐसा होगा
कोई तो होगा जो करेगा सब सही.
बस नहीं चाहता हूँ किसी से नफरत करना लेकिन 
इन्सान हूँ सब सही नहीं कर सकता.
सब सही है इस दुनिया में फिर भी ..............................

Thursday, 19 November 2009

मेरी भड़ास

इस छोटी सी दुनिया में में  बहुत से लोग मिलते हैं सच कहूँ तो टकराते हैं .मैं आज तक बहुत से लोगों से मिला हूँ ,कुछ लोग पसंद आये तो कुछ नापसंद, तो कुछ लोग ऐसे भी मिले जिनको मैं इस दुनिया का हिस्सा ही मानता .मतलब ये की वो इन्सान नहीं बल्कि किसी विक्षिप्त जगत से आये हैं .
ये लोग कहीं ना कहीं किसी ना किसी चीज़ में बहुत अच्छे होते हैं ,और उन अच्छी चीज़ों को लेकर वो ऐसे हो जाते हैं की राज ठाकरे बन जाते हैं . मैं ऐसे ही एक इन्सान से मिला जो अपने आप को कहता तो ये है की वो धर्म ,जाति,नस्ल में विश्वास नहीं रखता .विश्वास से अर्थ ये की वो भेदभाव नहीं करता .और ये सब उसकी बातों से झलकता भी है .लेकिन कहीं ना कहीं वो अपने आप को ही धोखा दे रहा होता है .
वो एक जाति को लेकर इतना ज्यादा विरोधी है की ,उसे लगता है की वो पागल हैं .वो इन्सान खुद अपनी जाति की जगह अपने राज्य की साही जाति का बताना पसंद करता है .और वो ये समझता है की हरियाणा में सिर्फ एक ही जाति बस्ती है .वो जो हरियाणा से है उसका दिमाग ही नहीं है,और ना जाने कितने आक्षेप .
मुझे तो सिर्फ उस इन्सान की बातों से एक ही सवाल कुंधता है की क्या ऐसे इन्सान हमारे समाज के लिए खतरनाक नहीं जो इन्सान को इन्सान नहीं समझते .और भी काफी कुछ है कहने को पर आगे बात कहीं ना कहीं निजी हो जाएगी .

@भड़ास 4 india

वो...




इस छोटी सी जिंदगानी में
किसी को पाना और खो देना


नादान दिल ना जानता था कुछ
अब ना धड्केगा
होश ना है ,रूठ गया है वो


अब तो भीड़ भी सूखा रेगिस्तान लगती है
बस अपने मन में ही बातें कर कर के हसना रोना है

रातों में नींद नहीं है ,दिन में वो नहीं है

बस देखती है उसको हर वक़्त 
की वो यहीं कहीं तो नहीं

पास हो कर भी वो इतना दूर है 
जानो वो कभी था ही नहीं 

पर जानता वो भी है 
  की मैं भी हूँ उसका   









Tuesday, 17 November 2009

कुछ ना बोल पाया



बोल कर भी उससे कुछ ना बोल पाया
बता कर भी उसे कुछ ना बता पाया
जान कर भी उसे ना जान पाया
छु कर भी उसे छु ना पाया
ना जाने कहाँ से आई थी वो
और ना जाने कहाँ चली गयी
और मैं बस सोचता ही रह गया  I


Monday, 16 November 2009

सपने और सच

सपने कभी कभी,
सचाइयों से भी सच से लगते हैं I
लगता है की जो सोचा है,
वो बस कुछ कदम की दुरी पर है ,
पर वो तो दूर दूर तक नज़र में नहीं है I
क्यूँ अपने आप ही ज़िन्दगी को
इतना जालदार बना लेते हैं
की
उन जालियों से निकलते निकलते
अपने आप को इतना घायल कर लेते हैं
की
कुछ बचता ही नहीं ज़िन्दगी में I


Saturday, 14 November 2009

नज़र की बात है




कोई मुश्किल नहीं होता काम
बस नज़र की बात है दोस्त
कोई जमीं से भी नही उठता 
जो उठता है वो आसमां छू जाता है..

(ये लाइंस मैंने ली हैं अपने सीनियर मलखान सिंह के ब्लॉग http://dunalee.blogspot.com/ से )

दोस्त ज़िन्दगी है


ज़िन्दगी में सबसे काम की चीज़ है दोस्ती
और जब दोस्त ,दोस्त को नहीं समझता
तो ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं रहती
दोस्त ना समझे तो फिर कौन समझे
और दोस्त मुंह मोड़ ले तो कहाँ जाया जाये
ना तो फिर कोई मंजिल है ना कोई दिशा
दोस्त ज़िन्दगी है

Tuesday, 10 November 2009

यादों की जीरोक्स




यारों संग बैठ के
उस चाय के खोखे पे
हाथ में कप और होठों पर चुगलियां
कौन-सी लड़की कौन-सा लड़का
कब, कैसे, क्या, कहां???? 
बैठना लाइब्रेरी के बाहर
गप्प हांकना
किस टीचर ने क्या कहा
क्या कराया, क्या नहीं पढ़ाया
कहां से जुगाड़ करें नोट्स
सीनियर्स को मस्का लगाना
नोट्स पाना
फोटोकॉपी किस दुकान की साफ है
कहां से सस्ती होगी जीरोक्स
पिछले प्रश्नपत्रों को खंगालना
नयों का अंदाजा लगाना
सब कुछ करना
मगर पढ़ाई.....
पास फिर भी हो जाना
नंबरों की किसे परवाह थी
प्राइवेट फील्ड में डिग्री किसे पूछनी थी???
जूनियर्स को बताना कि डोंट वरी
एक रात की पढ़ाई है काफी
आ जाना हॉस्टल में, या मिलना कल
क्या-क्या आएगा, सब समझा देंगे
कोई करता राजनीति 
तो कोई नासमझ उलझता उसमें
ऐसा भी होता है क्या पता था
किसी की खिंचाई
किसी की धुलाई
उठ के चल दिए, जब 'उसकी' कॉल आई
इंटर्नशिप तो कभी नौकरी की टेंशन
कोर्स के बाद दूर होती छोकरी की टेंशन
बाकी बातें छोड़ो, नॉट मेंशन
खैर, 
जो भी था, अच्छा था
मजा आता था
यारों संग बैठ के
उस चाय के खोखे पे

मी मराठी , मैं हिन्दी , और दुनिया गयी भाड में

हिन्दी है हम
वतन हैं हिंदुस्तान हमारा


ये बात अब पुरानी हुई लगती है .खासकर आज महाराष्ट्र विधानसभा में जो भी हुआ है उसके बाद लगता है कि अब ना तो हिन्दी राष्ट्र भाषा रह गयी है और ना ही हिंदुस्तान हिंदुस्तान .अब तो ये महाराष्ट्र ,आसाम ,कश्मीर,नागालैंड ,तमिलनाडु जैसे छोटे छोटे राज्य  देश बनते नज़र आ रहे हैं .हम पाकिस्तान और चीन का बहुत हो हल्ला करते रहते हैं लेकिन लगता है कि नक्सली,माओवादी ,उल्फा और ना जाने कितने ही ऐसे संघठन और दल हैं जो हमारे देश से अपने आपको अलग करना चाहते हैं .पहले तो दक्षिण में हिन्दी के विरोध में आन्दोलन चलते थे पर वो शायद ऐसे ना रहे होंगे या मैं कहूँ की वो समय अलग था .आज महाराष्ट्र पर राज करने का सपना लेने वाला राज इतना आगे बढ़ चुका है की ना केवल उतर भारतीयों को पीटा था है बल्कि अब एक विधायक द्वारा हिन्दी में शपथ लेने पर उसके साथ विधानसभा में ही हातापाई  कर दी गयी .
                    6 दशक बाद भी हम आजाद नहीं है .ना समाज से ,ना इन नेताओं से ,ना अपने आप से.बस एक बार किसी के इलाके ,धर्म ,भाषा का नाम ले दिया जाये तो हंगामा हो जाता है .ये सब याद दिलाता है भीष्म साहनी की अमर कृति तमस के उस भाग को जहाँ एक सुवर को मारा जाता है और बाद में अँगरेज़ उस के द्वारा हिन्दू मुस्लिम में दंगे करवा जाते हैं .इस से तो ऐसा लगता है की कहीं ना कहीं आज के नेता अंग्रेजों से कहीं  घातक हैं .जो अपने आप को संविधान से ज्यादा मानते हैं .
                    वैसे मुझे लगता है की कहीं ना कहीं जो मुद्दा राज ठाकरे उठा रहे हैं ,या कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बोला वो कहीं ना कहीं सही भी है ,बस बात ये है की उस बात को किस तरीके से दुनिया के सामने रखा जाये.आज तक जो भी  विस्थापन  पूर्व से हुआ है उसमें पुरानी सरकारों का बहुत बड़ा हाथ है .अगर सरकारें सही तरीके से काम करती तो क्या यु.पी.-बिहार में दुसरे इलाकों जितने साधन नहीं है की वो  विकसित  राज्य ना बन सकें .हमारे देश की राजनीती का सबसे अहम् हिस्सा  होते हुए भी वो सबसे बुरी हालत में हैं .इस के चलते पूर्वी यु.पी.-बिहार से नबे के दशक से दुसरे राज्यों में  विस्थापन  शुरू हुआ ,वो कहीं ना कहीं देखा जाये तो उन इलाकों  के लिए एक तरह से विष  बन चुका है .कोई माने ना माने पर हम लोग कुछ हद तक इन बातों को मानते हैं की पूर्व से आये लोगों ने यहाँ के हालत  बहुत बदल दिए  है .और ये  अच्छे हालत  तो बिलकुल भी नहीं है . और वहां से  विस्थापन  का दोष हम उन लोगों पर नहीं लगा सकते .ये इस विशाल देश की एक और दशा है .
                   राज ठाकरे ये भूल जाता है मराठी लोग भी देश के दुसरे हिस्सों में रहते हैं ,फिर तो उन्हें उन मराठी लोगों को अपने राज्य में बुला लेना चाहिए  , ताकि  वो अपनी जन्म भूमि की गोद में मर सकें .आज राज्यों के साथ ऐसा है ,कल फिर एक राज्य के विभिन् इलाकों के लोग कहेंगे की हमारे इलाकों में मत आओ .महाराष्ट्र  में ही कोंकण है जहाँ की भाषा कोंकणी है फिर तो वो लोग मुंबई नहीं जा पाएंगे .कुछ दिनों बाद हालत ये होंगे की भईया अपने जिले में रहो नहीं तो अच्छा  नहीं होगा .वैसे 2012 तो नजदीक ही है .लेकिन  एक बात ये है की अगर ऐसे लोग और 2-4 हो गये तो 2012 की भी जरुरत नहीं है .




Cartoons of the Week

Cartoons of the Week  from times (usa)

1. वाल स्ट्रीट के pirates
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2. जोब्स  का  है  बुरा  हाल  हर  कहीं ,एक भूतिया मूवी जैसा लगता है सब
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३. swine फ्लू भी परेशान हो गया लगता है अब तो
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हम भाषण तो खूब देते हैं पर अपने पर ही लागु नहीं  करते
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४. मीडिया की लडाई सिर्फ हमारे देश में ही नहीं होती >>>>

Sunday, 8 November 2009

right and wrong

You are right and you are wrong. you heard this word from your childhood to your old age. But who decide that this is right and this is wrong. May be your parent or your teacher or political parties or? But the main question is who decides that you are wrong or right and more important is how they know that you are right or wrong.  The thing which is right for you may be wrong for others and the thing which is wrong for me may be right for others. So, by this we can come to a conclusion that the parameter of right and wrong are different for different people. They are just believes and can be vary from city to city, from state to state, from country to country and more over from people to people.



Parents think that they know more and better than their children. They give them useless advice,which seems to be very important to them and for their children. They tell him/her their own experiences and wish from the deepest of their heart that their child fullfil their own unfulfilled desired. Their is nothing wrong in it. But sometimes parents expectations and their control on their own children keep the child mum and quiet. After this child move in the direction in which parents want but his own desire to do anything has been hammered by their own love ones.

(from the blog "known sense" ,"www.saurabhbaweja.blogspot.com")

तन्हाई...

लिखती थी तन्हाई में , आंसुओं से अपना गम
कोई नहीं था महफिल में , जो बन जाये उसका हमदम
महफिल से वो घिरी होती थी
फिर भी तन्हाई संग होती थी
उसकी महफिल थी तन्हाई में
महफिल में वो तन्हा होती थी
महफिल में कहता था उसे दर्द,मुझे तन्हाई में ले चलो
आंसू भी कहते थे , सब्र कि इंतिहा हुई ,अब हमें मत रोको


       महफिल ने किया उसे महफिल से दूर
            किया तन्हाई से दोस्ती करने को मजबूर
                                                  उसकी तन्हाई में साथ देने आया खुदा भी नहीं
                                                  जब मौत मांगी तो वो भी दूर चली गयी कहीं
                                                   आज उसका जीवन बिलकुल विराना है
                                                 फिर वो कहती है कि ,बाहर ने कभी तो आना है
                                                आशा कि ज्योति ,तन्हाई भी न बुझा पाई
                                               तन्हाई से सब डरते हैं , उसने तन्हाई से दोस्ती निबाही I

Thursday, 5 November 2009

लुट गए हम सरे बाज़ार में



लुट गए हम सरे बाज़ार में
मैं बूँद बूँद हुआ ऐसे ही जलने  को
तरस  रहा था मैं तुमसे ही मिलने  को
आ भी जा मेरे दिल को ना जला
(ये पंक्तियाँ मेरी नहीं है ,ये रहीम शाह जो की पाकिस्तानी गायक हैं उनके एक गाने "आ भी जा" से ली गयी है )

एक दिन ही की तो बात थी

मैं उनसे कुछ कह न सका
एक दिन की ही तो बात थी

चंद पल बिता न सके वो मेरे संग
एक दिन ही की तो बात थी

दुख तो आज हो रहा है यारो
जो वो जनाजे में भी न आए
आखिर एक दिन ही तो बात थी

(ये पंक्तियाँ मेरे ब्लॉग साथी मलखान सिंह के ब्लॉग dunalee.blogspot.com से मैंने यहाँ share की हैं .)

Monday, 2 November 2009

ये लाइफ है ना लाइफ



ये लाइफ  है  ना  लाइफ
पता  नहीं  क्या  है
कभी  ये  इतना  कुछ  देती  है
की  समेटने में  नहीं  आता
तो  कभी
ये  इतना  कुछ  ले  लेती  है
की फिर हमारे पास कुछ नहीं छोड़ती.
लाइफ में कभी कभी इतने  इफ हो जाते
हैं की दिल कर जाता है उफ.

ये सब बातें ऐसी लगती हैं
की
सब कहने की हैं
पर कहीं ना कहीं
क्या ये सच नहीं हैं
की ये लाइफ हम से ऐसे ऐसे
कृत्य करवाती है की हम भी
एक बार सोचते हैं
की क्या सच में ऐसा
हमने ही किया है .

कहीं ना कहीं
सच  कहूँ
तो मैं अभी नहीं जानता
की क्या लिख रहा हूँ
जब ध्यान आएगा तो जरुर सोचूंगा
की मैंने ये क्यूँ लिखा .