जमाना आज नहीं , डगमगा के चलने का
संभल भी जा , की अभी वक़्त है संभलने का I
बहार आये चली जाए ,फिर चली आये
मगर ये दर्द का मौसम नहीं बदलने का I
ये ठीक है , कि सितारों पे घूम आयें हैं
मगर किसे है सलीका ,जमीं पर चलने का I
2 comments:
कुछ लोग ऐसे भी मिलेंगे आपको
जो जानते होंगे हुनर जमीं पर चलने का
और वो छू सकते होंगे आसमान भी
aamin
aur vo hum hain
jo choo saktein hain
aasmaan ko
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