Friday, 30 October 2009

रे राही रे


                                                          
रे राही ,रे राही रे
ना कर अभिमान
दर कदम दर चल
नहीं तो
गिर तू जायेगा
ना सोच सीधे
सातवाँ आसमां पाने की

रे राही ,रे राही रे
धीरे चल
पायेगा तू हर आसमां
दर कदम दर चल
करेगा तू हर आसमां को पार
रे राही रे ...

Wednesday, 28 October 2009

रास्ता...



समय चक्र है चलता ही जायेगा 
और हम ऐसे ही चलते जायेंगे 
टूटा फूटा रास्ता आएगा पर 
हम उन सब से पार पा जायेंगे I 

कब !!!




कब समझ आएगा ये ज़िन्दगी का सफ़र,
कब सुलझेगी ये ज़िन्दगी कि उलझनें ,
कब
और ये "कब" ख़तम होगा मेरी ज़िन्दगी से I

Tuesday, 27 October 2009

किसे है सलीका...


जमाना आज नहीं , डगमगा के चलने का 
          संभल भी जा , की अभी वक़्त है संभलने का I 
बहार आये चली जाए ,फिर चली आये 
          मगर ये दर्द का मौसम नहीं बदलने का I
ये ठीक है , कि सितारों पे घूम आयें हैं 
           मगर किसे है सलीका ,जमीं पर चलने का I

Monday, 26 October 2009

हाय रे टी.आर.पी




कब होगी इस रिश्ते की बिदाई I

इस रिश्ते और बिदाई ने बजा दी है बैंड I
अब हफ्ते में 5 दिन नहीं बल्कि आएगा 7 दिन I
5 दिन क्या कम थे जो अब और दो दिन सहेने पड़ेंगे I
टी.आर.पी की इस बकवास बाजी में हम जैसों का बज गया है बैंड I
    बिग बॉस से डर कर अब स्टार प्लस ने लिया फैसला की क्यूँ ना आये सातों दिन पैसा I

Sunday, 25 October 2009

shockers n jockers - 1

shockers n jockers
मेरा पहला ब्लॉग कालम जिसमें मेरी जिंदगी के कुछ अनुभव हैं जहाँ मुझे झटका तो लगा ही साथ ही साथ इन्सान रूपी जोकर के दर्शन भी हो गए .ये जोकर कुछ बार मैं हूँ तो कुछ बार दुसरे .कईं बार मुझे झटके लगे तो कुछ बार दूसरों को . 
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    किस्सा कुर्सी और मेज़ का ...                                                                                                                                                                          

 बच्चे  तो बच्चे उनके बाप उनके भी बच्चे बने लगते हैं
 इस कुर्सी कि दौड़ में सभी अपनी इज्ज़त खुद ही तार तार करते नज़र आते हैं .

शीर्षक से आपको थोडा अजीब लगे की किस्सा तो कुर्सी का होता है ,पर मैं मेज़ को क्यूँ साथ में ले आया .अब बात ये है की बेचारी कुर्सी अकेले चर्चा में आते आते परेशान हो गयी है तो मेज़ ने उसका साथ देने की सोची .
       ये जो किस्सा है किसी राजनितिक पार्टी या किसी नेता का नहीं है जो सत्ता के लिए या मंत्रालय के लिए लड़ रही है बल्कि एक ऐसे संस्थान का है जहाँ पढ़ाई लिखाई की जाती है पर वहां के नए नवेले अध्यापक बोले तो अतिथि व्याख्याता बच्चों को पढ़ने की बजाय उन चीज़ों पर ध्यान दे रहे हैं जो की न तो बच्चों के काम के हैं ना उनके. हम जब भी किसी संस्थान में देखते हैं तो वहां कुछ न कुछ राजनीती जरुर होती है .पर शायद वहां कुर्सी मेज़ के लिए तो पंगा तो नहीं करते होंगे .बहुत सी ऐसे वाकया मैंने देखे हैं जहाँ या जिन मुद्दों पर खींचतान होती है वो बहुत ही छोटे होते हैं .जिनको आसानी से दरकिनार किया जा सकता है पर वहां पर चुप चाप बैठने की बजाय हम वहां ऊँगली करने लगते हैं .

               अब इस मेज़ कुर्सी वाले मुद्दे को ही ले.एक संस्थान का स्टाफ रूम है जहाँ सभी अतिथि व्याख्याता बैठते हैं और अपना सामान रखते हैं .अब वहां हालत बन गए पुराने लोगों और नए रंगरूटों के बीच में लडाई के ,सिर्फ कुर्सी और मेज़ के लिए .बात सिर्फ इतनी सी है की नए रंगरूटों ने मेजों को हथिया लिया. और अगर उनकी मेज़ या कुर्सी का इस्तेमाल कोई कर लेता है तो उन्हें दिक्कत  हो जाती है . जब की ये मुद्दा बनता ही नहीं है.  अब पुराने व्याख्याताओं  को ये बात थोडी अटपटी लगी क्यूंकि उन्हें बैठने  को बेंच मिल रहे है .अब नए बन्दे पुरानो से ऐसे व्यवहार  कर रहे हैं की वो ही सब कुछ हैं .अगर किसी कि कुर्सी उनको उनकी जगह से खिसकी मिले तो वो तब तक बूत कि तरह खड़े रहते हैं जब तक कि उनकी कुर्सी से बैठने वाला बंद खडा ना हो जाये या ,उसे उसकी जगह पर रख दे .नए लोगों ने तो वहां ताले भी लगा दिए जैसे कि सारी  दुनिया का बही खता उन्ही के पास है .ये लोग ना केवल अपनी साख गिरा रहे हैं बल्कि उस संस्थान कि भी .और साथ ही साथ वहां पढने वालों के आगे हंसी का पात्र भी बन रहे हैं .
                  नेताओं ने कुर्सी कि महिमा के आगे देश का तो बेडागर्क  कर ही रखा था ,अब ये कीडा दुसरे लोगों में भी घुश गया है .अब ना जाने आगे आगे क्या होगा .अब आगे क्या होगा इस पर एक अलग लेख हो सकता है .
 जैसे कि हर कहानी की एक सीख  होती है वैसे ही इस कहानी   की भी है ...वैसे मैं यहाँ इसे सीख नहीं कहूँगा बल्कि इसे दो भागों  में  बाटूंगा  .
1. shock of the story - झटका ये की उस संस्थान का क्या हाल हो गया है .
2. joker of the story  -  और यहाँ जोकर वो लोग बने हैं जो नए आयें हैं और अपने आपको तीसमारखां समझते    
  हैं ,जब की  उनमे से शायद ही कोई अपने पद के लिए सही बैठता है.
(ये किस्सा कुछ दिन पहले का ही है ,मैंने यहाँ संस्थान या किसी इन्सान का नाम नहीं दिया है . यहाँ किसी पर ऊँगली उठाना मकसद नहीं है बल्कि उस बात के पीछे का मतलब समझने का है जो हुआ है .)
                                                      
          

Saturday, 24 October 2009

जाने क्यूँ...




सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं I
जिसको देखा ही नहीं उसे खुदा कहते हैं I
ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं कहने वाले I
जीने वाले तो गुनाहों की सजा कहते हैं I
फासले उम्र के कुछ और बढा देती है I
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं  I

थोडी दूर...


कठिन है राह गुजर ,थोडी दूर साथ चलो I
बोहत बड़ा है सफ़र , थोडी दूर साथ  चलो I
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है I
मैं जानता हूँ मगर थोडी दूर साथ चलो I

Tuesday, 13 October 2009

football shootball ...everywhere

आखों में हैं इंतज़ार, जोश और जूनून .
अब बारी है अफ्रीका की दिखने की जोश और जूनून
जून का महीना साल 2010
देखेगी  पूरी दुनिया फुटबॉल का खेल ...
धन धना धन धन...धन धन
ये सिर्फ खेल नहीं ज़िन्दगी है
ये ज़िन्दगी नहीं ईमान है
ये फुटबॉल है
ये दिल में बस्ती है
दुनिया की आँखों में दिखती है
ये फुटबॉल है मेरी जान है ...
 (छायाचित्र  सौजन्य :- वर्ल्ड कप 2010 facebook )


                                                                                                            

Monday, 12 October 2009

हरियाणा में चुनाव और न समझ आये मुझे वोट करूँ या ना करूँ.


हरियाणा  में कल  चुनाव हैं ,और मुझे  समझ नहीं आ रहा की मैं वोट देने जाऊँ या नहीं . अब इस मसले में २ बातें हैं .पहली तो ये की कुछ महीने  पहले  ही  मैं  रेडियो में  वोट देने के लिए लोगों का ईमान जगा रहा था ,और दूसरा ये की मेरे चुनाव-क्षेत्र में मुझे कोई ऐसा उमीदवार नहीं दिखता की मैं उसे वोट दूँ .दूसरी बात के लिए मैं कहना चाहूँगा की उमीदवार जरुर है पर जिस  पार्टी की वो उमीदवार हैं वो पार्टी प्रदेश में अंग्रेजी गाने नहीं बजेनी देगी अगर वो सता में आती है तो .
वैसे जिस पार्टी की मैं बात कर रहा हूँ उसका हरियाणा की सत्ता में आना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है .फिर भी इस पुरे वाकया ने मेरे साथ अछी खासी गड़बड़ कर दी है .अब वो बात जो मैंने पहले की थी की मैंने वोटर्स का ईमान जगाया था ,और आज मैं  खुद ही मुश्किल में हूँ की वोट करूँ या नहीं .वैसे हरियाणा  में  इस  बार  जनमत  बहुत साफ़   नज़र आ  रहा  है .

इस बार के चुनावों में सत्ताधारी दल के खिलाफ कोई भी ,विपक्षी दल मजबूत  नहीं दिख रहे हैं .मुख्यमंत्री हूडा  ने बेशक कुछ जगह काफी अच्छा  काम किया है पर कहीं जगह वो अपनी  कुछ बड़ी और बहुपर्तिक्षित परियोजनाओं को पूरा नहीं कर पाए या कहें तो अमलीजामा नहीं पहना पाए .सोनीपत में बन रही राजीव गाँधी एजूकेशन सिटी  ४ साल में भी सिर्फ २ कदम ही चल पायी .साथ ही साथ वर्तमान सरकार बिजली के मुद्दे पर अपनी वाही वाही लूटना चाह रही है पर सचाई तो ये है की जो भी बिजली हरियाणा  में बनेगी उसका आधा हिस्सा तो  दिल्ली  को जायेगा .
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कांग्रेस के अलावा किसी भी राष्ट्रीय   दल का हरियाणा में जनाधार  नहीं है. हरियाणा में आया राम गया राम और गठबंधन राजनीती  बहुत रही है .और गठबंधन राजनीती न तो सफल रही है ना ही बहुत साफ़ सुथरी .और इसका नतीजा न केवल जनता बल्कि खुद उन दलों को भी भुगतनी पड़ी जो सत्ता में थे .पिछले सत्ता समय में इनेलो के करता धर्ताओं ने कुछ ऐसे काम किये की उनके खुद के लोग भी उनसे अलग हो गए .और जहाँ तक जनता की बात है तो जनता तो नाराज़ हो ही गयी .और इस बार भी इनेलो के साथ कुछ अच्छा होता नज़र नहीं आ रहा .वहीँ दूसरी तरफ भजनलाल की पार्टी हंज्का शायद अपने परिवार के दम पर १-२ सीट ले जाये तो  बहुत बड़ी बात होगी .
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और आखिर में एक बात की इस बार वोट करना मेरा ईमान नहीं है .और शायद हरियाणा में भी किसी का नहीं हो.

Tuesday, 6 October 2009

ज़िन्दगी = ?

मेरी ज़िन्दगी नहीं है एक पहेली 

पर सच बोलूं तो मैं खुद एक पहेली हूँ अपने लिए 
मेरी ज़िन्दगी बहुत कुछ खास है इसमें  
पर सच बोलूं तो मुझे नहीं पता की क्या ?
मेरी ज़िन्दगी क्या है ?
न मुझे है पता 
न जाने क्यूँ 
लगता है की मेरी ज़िन्दगी है एक बड़ा सवाल 
शायद इसका जवाब है मेरे पास 
पर मैं नहीं जानना चाहता
क्यूँ ,
नहीं पता 
बस इतना ही जानता हूँ की मैं हूँ खास ...