यहाँ तो लगता है की अँधेरे ने फैला दिए हैं अपने पर
कुछ भी ना लगे सही
क्यूंकि आम इन्सान की ना है किसी को फ़िक्र
और हो भी क्यूँ
अरबों करोड़ों रुपए तो उन्हें मिल ही जाते हैं अपने लिए
जुर्म कर के भी जब उन्हें है ही पता की
बस एक इस्तीफा देकर ही चल जायेगा काम तो
कहे को वे करें चिंता
यहाँ तो सब बने बैठे हैं मौम के बूत
वो भी जो जुर्म करते हैं
और वो भी जिन पर जुर्म होता है
साल दर साल ऐसे ही तो होना है
चाहे हम कुछ भी करें
कितना हो-हल्ला मचाएं
फिर से 365 दिन बाद एक साल और चला जायेगा
पर फिर भी कोई कुछ नहीं करेगा
दिन महीने साल तो ऐसे ही चले जातें रहेंगे
हम उसके जाने के आंसू
और आने का नशा करते रहेंगे
पर कुछ ऐसा ना करेंगे जिस से हमे ख़ुशी मिले
हमारी धरती फले फुले ...
साल दर साल ये ही है कहानी
इन्सान ने बना दी धरती
एक अधूरी कहानी ...